परिवार की पार्टी के खिलाफ विद्रोह: सोनिया अध्यक्ष पद पर काबिज रहें और राहुल पर्दे के पीछे से करें सियासत
विराटता देखने की आदी आंखें जब सूक्ष्म देखने लगें तो विराट व्यक्तित्व का अस्तित्व खतरे में आ जाता है। नेहरू-गांधी परिवार यानी सोनिया और राहुल गांधी की कांग्रेस में कुछ ऐसा ही हो रहा है। जो कल तक इस राजनीतिक परिवार की अदा पर झूमते थे, आज उनकी भृकुटि तनी हुई है। मरणासन्न कांग्रेस में एक-दो नहीं, 23 ऐसे लोग सामने आ गए हैं, जो पार्टी के लिए बलि का बकरा बनने को तैयार हो गए हैं। अब बलि लेने के आदी लोगों के हाथ कांप रहे हैं। कांग्रेस के इन 23 नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को अगस्त के पहले सप्ताह में जो पत्र लिखा था, उस पर वे कायम हैं। कार्यसमिति की बैठक में खत के मजमून के बजाय इन नेताओं की धृष्टता को धिक्कारने के वफादारों के समवेत घोष का इन पर कोई असर नहीं हुआ। यह बात सोनिया की कांग्रेस के लिए नई नहीं है। शरद पवार और उनके साथियों का खुला विद्रोह, पीवी नरसिंह राव का कभी नरम-कभी गरम रुख और सीताराम केसरी की अड़ने की कोशिश हम देख चुके हैं। ये घटनाएं सोनिया के त्याग की देवी बनने से पहले की हैं। तब कांग्रेस में उनकी छवि की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई थी।
परिवार नहीं, बल्कि कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहेंगे
कांग्रेस को परिवार की पार्टी बनाने का जो अनुष्ठान इंदिरा गांधी ने 1969 में शुरू किया था, उसकी पूर्णाहुति मई 2004 में हुई। इसके बाद के 16 वर्षों में कांग्रेस में सोनिया की छवि अविनाशी हो गई। सब लोग गलत कर सकते हैं, यहां तक कि राहुल गांधी भी, लेकिन सोनिया गांधी कुछ गलत नहीं कर सकतीं। दुर्भाग्य से राजनीति में निष्ठाएं बदलने में देर नहीं लगती। कांग्रेस के इन 23 नेताओं ने किसी आवेश में आकर नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर तय किया कि अब से वे परिवार नहीं, बल्कि संगठन के प्रति निष्ठावान रहेंगे। इन नेताओं ने अपने पत्र में संगठन की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर करने के साथ ही सुधार के उपाय भी सुझाए हैं।
पत्र ने सोनिया के लिए बाहर जाने का रास्ता खोल दिया
पत्र में लिखी गई बातें सार्वजनिक हो चुकी हैं। पता नहीं आगे क्या होगा, लेकिन दो बातें साफ नजर आ रही हैं। एक, ये 23 नेता पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्हेंं इंतजार है कि सोनिया पत्र में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा के लिए उन्हेंं बुलाएंगी। दूसरा, इस पत्र ने सोनिया की अविनाशी छवि को खंडित कर दिया है। ये नेता सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष पद से हटाने की न तो बात कर रहे हैं और न ही मांग। पत्र का संदेश महज इतना है कि पुराना हटे, तो नए को अवसर मिले। पत्र ने सोनिया के लिए बाहर जाने का रास्ता खोल दिया है। अब यह उन्हेंं तय करना है कि वे कैसे जाना चाहेंगी? वैसे उनका ही दिखाया हुआ सीताराम केसरी वाला भी रास्ता है। ये बातें कड़वी लग सकती हैं, लेकिन इनकी सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता।
23 नेताओं के अप्रत्याशित व्यवहार से सोनिया परिवार स्तब्ध है
इन 23 नेताओं के इस अप्रत्याशित व्यवहार से सोनिया परिवार स्तब्ध है। नेता को जब अहसास नहीं होता कि उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई है, तो वह ऐसे ही किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आता है। सोनिया को अगला कदम उठाने से पहले 2005 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के साथ जिन्ना की मजार से लौटने के बाद जो हुआ, उसे याद कर लेना चाहिए। उस समय जो भाजपा नेता आडवाणी के विरोध में खड़े हुए, उन सबका राजनीतिक जीवन आडवाणी ने अपने हाथ से गढ़ा था, पर उन भाजपा नेताओं ने व्यक्ति के बजाय संगठन को बचाना ज्यादा जरूरी समझा।
अब यह खेल नहीं चलेगा, सोनिया पद पर काबिज रहें और राहुल पर्दे के पीछे से मुद्दे थोपते रहें
लोहिया के समाजवादियों का एक समय बड़ा प्रिय नारा था-सुधरो या टूटो, तो इस पत्र में राहुल गांधी के लिए भी संदेश है। सुधरो या हटो। संदेश है कि पार्टी, राहुल की अपरिपक्वता का खामियाजा अब और भुगतने के लिए तैयार नहीं है। यह भी कि अब यह खेल नहीं चलेगा कि सोनिया अध्यक्ष पद पर काबिज रहें और राहुल पर्दे के पीछे से बिना किसी जिम्मेदारी के अपनी पसंद के लोग और मुद्दे थोपते रहें।
कांग्रेसियों को राजनीतिक भविष्य का सपना देखने की आजादी मिले
व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने लिखा है, ‘आत्मविश्वास कई तरह का होता है, धन का, बल का, विद्या का, पर सबसे ऊंचा आत्मविश्वास मूर्खता का होता है। सबसे बड़ी मूर्खता है-इस विश्वास से लबालब भरे रहना कि लोग हमें वही मान रहे हैं जो हम उन्हेंं मनवाना चाहते हैं।’ परिवार को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा। यह उनके आत्मसम्मान के लिए ही नहीं, कांग्रेस के लिए भी अच्छा होगा। समय आ गया है कि कांग्रेसियों को इस परिवार के बिना अपने राजनीतिक भविष्य का सपना देखने की आजादी मिले।
निराश नेतृत्व किसी संगठन को सुनहरे भविष्य की राह पर नहीं ले जा सकता
यदि परिवार के लोग पार्टी में बने रहना चाहते हैं, तो उन्हेंं हवा के घोड़े से उतरना होगा। सबको समान अवसर के सिद्धांत पर काम करना होगा। पता नहीं, इस पत्र को लिखने वाले कितनी दूरी तक जाने को तैयार हैं, लेकिन एक संकल्प तो नजर आता है। कार्यसमिति की बैठक में बहुत कुछ भला-बुरा सुनने और उसके बाद पार्टी प्रवक्ता की धमकी वाले अंदाज में दिए गए बयान के बावजूद अभी तक कोई पीछे नहीं हटा है। इन नेताओं को पार्टी के इस संकट में उसे उबारने का अवसर नजर आ रहा है। यह आशावादिता के लक्षण हैं। इसके विपरीत राहुल को इस अवसर में खतरा नजर आ रहा है। यह निराशा के लक्षण हैं। निराश नेतृत्व किसी संगठन को सुनहरे भविष्य की राह पर नहीं ले जा सकता।
सोनिया अध्यक्ष पद ही नहीं, बेटे को अध्यक्षी सौंपने की जिद भी छोड़ें
सोनिया गांधी की राजनीतिक यात्रा को दो कालखंडों में बांटा जा सकता है। पहला 1998 से 2004 तक और दूसरा मई, 2004 से अभी तक का। उनके नेतृत्व में पार्टी दो चुनाव 1998 और 1999 में हारी और दो 2004 और 2009 में जीती। पिछले दो लोकसभा चुनावों की हार राहुल गांधी के खाते में जाती है। आप चाहें तो इसे परिवार की सामूहिक जिम्मेदारी मान लें, तो छह में से सिर्फ दो लोकसभा चुनावों में जीत, वह भी स्पष्ट बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर। छह में दो यानी 33 फीसद। आजकल तो इतने नंबर पर पास भी नहीं होते। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को हिंदू विरोधी और भ्रष्टाचार का पर्याय बनाने के लिए भी सोनिया को याद किया जाएगा। अब सोनिया गांधी की राजनीतिक विदाई का समय आ गया है। उन्हेंं चाहिए कि वह अध्यक्ष पद ही नहीं, बेटे को हर हाल में अध्यक्षी सौंपने की जिद भी छोड़ें। आगे का फैसला पार्टी और राहुल गांधी पर छोड़े दें।
Warning: A non-numeric value encountered in /home/khabartrack/public_html/wp-content/themes/publisher/includes/func-review-rating.php on line 212
Warning: A non-numeric value encountered in /home/khabartrack/public_html/wp-content/themes/publisher/includes/func-review-rating.php on line 213
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.