नया हांगकांग बन सकता है अंडमान-निकोबार, पूरी दुनिया का एक चौथाई तेल जहाज यहीं से होकर गुजरतें हैं
इसी दस अगस्त को जब प्रधानमंत्री ने चेन्नई और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के बीच समुद्र के रास्ते होकर जाने वाली ऑप्टिकल फाइबर केबल का उद्घाटन किया तो आम भारतीय के मानस पटल से आमतौर पर गायब रहने वाला यह क्षेत्र एक बार फिर झिलमिला गया। बहुतों को ऐसा लग रहा होगा कि भारत सरकार ने वहां की आदिवासी जनता और सरकारी अफसरों के अमले के फोन सिग्नल सुधारने और उन्हेंं 2जी के आदिमयुग से बाहर निकालकर 4जी युग में ले आने का काम किया है। ऐसा नहीं है। समुद्र की तली के साथ-साथ 2312 किमी की दूरी तक 1224 करोड़ रुपये की लागत से बिछाई गई इस ऑप्टिकल फाइबर तार का मतलब आधुनिक संचार तकनीक के किसी अजूबे से कहीं ज्यादा कुछ और भी है।
अंडमान-निकोबार क्षेत्र को नए हांगकांग के रूप में विकसित करने की योजना
यह एक ऐसा अजूबा है जिसमें अंडमान-निकोबार क्षेत्र को भारत के एक दूरस्थ कोने में गुमनाम से रहने वाले द्वीप समूह के स्तर से उठाकर नए हांगकांग के रूप में विकसित करने के बीज छिपे हैं और एशिया के तेजी से बदलते घटनाचक्र में दुनिया का एक ऐसा सामरिक केंद्र बनने की संभावनाएं भी जो भारत को बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में एक निर्णायक शक्ति बनाकर खड़ा कर सकता है।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 572 द्वीप हैं, हांगकांग से आठ गुणा ज्यादा क्षेत्रफल
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 572 द्वीप हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 8259 वर्ग किमी है यानी हांगकांग से आठ गुणा, सिंगापुर का 11 गुणा, सेशेल्स का 20 गुणा और मॉरीशस का चार गुणा क्षेत्रफल है इसका। यहां के मूल निवासी और संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षित रखने के बाद भी यहां इतना विशाल क्षेत्र बचता है कि इसे दुनिया के एक नए व्यापार, पर्यटन और सैनिक सुरक्षा के केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
चीन की तानाशाही नीतियों के कारण हांगकांग द्वीप समूह अपना चरित्र खो बैठने के कगार पर है
यह मात्र संयोग नहीं है कि भारत सरकार ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को शेष भारत के उच्च कोटि के संचार तंत्र का हिस्सा बनाने के लिए एक ऐसे मौके पर कदम उठाया जब चीन की तानाशाही नीतियों के कारण उसका हांगकांग द्वीप समूह अपना अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक चरित्र खो बैठने के कगार पर है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक ऐसा वैकल्पिक स्थान ढूंढ रही हैं जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्ग पर हो और जहां की राजनीतिक व्यवस्था भरोसेमंद हो। यह जरूरत पूरी करने के साथ अंडमान-निकोबार क्षेत्र भारत-अमेरिका-जापान और ऑस्ट्रेलिया के फिर से जीवंत हो रहे क्वाड शक्ति संगठन का संयुक्त सैनिक ठिकाना बन सकता है
ऑप्टिकल फाइबर केबल: संचार की नई सीढ़ी से भारत की एक्ट-ईस्ट नीति को नया आयाम मिलेगा
इस ऑप्टिकल फाइबर केबल के उद्घाटन भाषण में प्रधानमंत्री ने इस बात को रेखांकित किया कि संचार की इस नई सीढ़ी से भारत की एक्ट-ईस्ट नीति को नया आयाम मिलेगा। इससे न केवल अंडमान-निकोबार क्षेत्र के मौजूदा हवाई अड्डों के विस्तार और नए हवाई अड्डे शुरू करने में मदद मिलेगी, बल्कि इस क्षेत्र को व्यापारिक समुद्री जहाजों के रखरखाव के एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में भी विकसित किया जाएगा। यह जानना जरूरी होगा कि भारत का यह द्वीप समूह दक्षिण-पूर्व एशिया और दुनिया के सबसे सक्रिय समुद्री यातायात मार्गों में गिने जाने वाले मलक्का-स्ट्रेट्स के मुहाने के पास स्थित है। यहां से म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया भारत के बहुत निकट हैं
इंदिरा प्वाइंट: पूरी दुनिया के एक चौथाई तेल जहाज यहीं से होकर गुजरते हैं
भारत के सबसे अंतिम छोर इंदिरा प्वाइंट से सुमात्रा की दूरी केवल 145 किमी है। इस इलाके के सामरिक महत्व को इस बात से भी जाना जा सकता है कि पूरी दुनिया का एक चौथाई तेल जहाजों में यहीं से होकर गुजरता है। चीन का 80 प्रतिशत और जापान के कुल तेल आयात का 60 प्रतिशत हिस्सा यहीं से होकर जाता है। इसके अलावा अफ्रीका, यूरोप और एशिया को होने वाला चीनी निर्यात और इन देशों से उसके द्वारा आयात किया जाने वाला कच्चा माल भी इसी इलाके से होकर गुजरता है। यह अंडमान-निकोबार के सामरिक महत्व को बढ़ा देता है। यदि भारत इस क्षेत्र में अपनी सैनिक शक्ति को मजबूत करता है तो दक्षिणी चीन सागर में चीन की लगातार बढ़ रही दादागीरी पर क्वाड के माध्यम से प्रभावकारी अंकुश लगाया जा सकता है।
अमेरिका ने भारतीय नौसेना के साथ अंडमान में नौसैनिक अभ्यास कर इसका महत्व बढ़ा दिया
पिछले दिनों अमेरिकी सरकार ने अपने जंगी जहाज और एयरक्राफ्ट कैरियर नमित्ज को जिस तरह भारतीय नौसेना के साथ अंडमान में नौसैनिक अभ्यास के लिए भेजा वह इस भारतीय इलाके के सामरिक महत्व को रेखांकित करने के लिए काफी है। आशा की जा रही है कि आगामी मालाबार युद्धाभ्यास में क्वाड का चौथा देश ऑस्ट्रेलिया भी शामिल होगा। 2007 में चीनी दबाव के कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार ने क्वाड से बाहर निकलने का फैसला कर लिया था, लेकिन अब चीन की दादागीरी से परेशान होकर वह जिस उत्सुकता के साथ क्वाड में लौटने का प्रयास कर रहा है वह दिखाता है कि क्वाड के एक सैनिक गठबंधन का रूप लेने और उसमें भारत की बड़ी भूमिका की संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं।
अंडमान-निकोबार का महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र के रूप में उभर कर आना तय
ऐसा होने पर अंडमान-निकोबार का एक महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र के रूप में उभर कर आना तय है। इस इलाके में भारत की ऑप्टिकल फाइबर केबल पहुंचने से अब वहां जिस तरह नए आधुनिक हवाई अड्डों के बनने, पुराने हवाई अड्डों के विस्तार, बैंकिंग और दूरसंचार सेवाओं के आधुनिकीकरण तथा छोटे और दूरस्थ द्वीपों के विकास की संभावनाओं को नए पंख लग रहे हैं उससे इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के लिए भी नए द्वार खुलने के आसार हैं। इस वातावरण में इस संभावना पर विचार होना चाहिए कि अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के एक भाग को अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र के रूप में विकसित किया जाए ताकि हांगकांग में लोकतांत्रिक व्यवस्था समाप्त होने के कारण वहां से पलायन करने वाले व्यापारिक समूहों को यहां आकर बसने के लिए आमंत्रित किया जा सके।
ब्रिटेन ने कहा था अंडमान क्षेत्र को हांगकांग जैसा मुक्त व्यापारिक क्षेत्र में विकसित किया जाए
1997 में जब ब्रिटेन ने हांगकांग का नियंत्रण चीन सरकार को सौंपा था उस समय उसने भारत सरकार के सामने प्रस्ताव रखा था कि अंडमान क्षेत्र को हांगकांग जैसे एक मुक्त व्यापारिक क्षेत्र में विकसित किया जाए, लेकिन दुर्भाग्य से कभी हां कभी न में फंसी रहने वाली भारतीय नौकरशाही ने अपने ढिल्लूपन में इस अवसर को गंवा दिया था।
23 साल बाद भारत के लिए नया अवसर है अंडमान क्षेत्र को मुक्त व्यापारिक क्षेत्र में विकसित करने का
आज 23 साल बाद भारत के लिए एक नया अवसर है। सौभाग्य से इस समय अंतरराष्ट्रीय वातावरण भारत के बहुत अनुकूल है, लेकिन असली सवाल यही है कि क्या हम अपने पुराने असमंजस वाली ढुलमुल परंपरा को छोड़कर एक नई और साहसिक पहल के लिए तैयार हैं?
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