जांच के नाम पर महिलाओं से छेड़छाड़ करने वाले सेना के डॉक्टर की 34 साल बाद सजा बहाल
नई दिल्ली। लखनऊ में सेना के बेस अस्पताल में मेडिकल चेकअप के दौरान दो महिलाओं के निजी अंग छूने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल बाद सेना के डाक्टर को सेवा से हटाए जाने की सजा को बहाल कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एक डॉक्टर के रूप में भरोसे की स्थिति का दुरुपयोग करना उचित नहीं है। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल एसएस बेदी के आचरण को निंदनीय बताते हुए सजा को बहाल कर दिया।
इसके साथ ही पीठ ने केंद्र सरकार को डाक्टर की अधिक उम्र और उसके सर्विस रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही शुरू करने की हिदायत दी है। जानकारी के अनुसार डॉक्टर बेदी के खिलाफ दो महिलाओं ने 15 मई, 1986 को एक शिकायत की थी कि जांच के दौरान उनके निजी अंगों को गलत इरादे से स्पर्श किया गया। आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्युनल ने डाक्टर को दोषी मानते हुए सेवामुक्त करने की सजा सुनाई लेकिन बाद में सजा को 50 हजार रुपए के जुर्माने में तब्दील कर दिया। इस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी।
लंबी सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 34 साल बाद डाक्टर बेदी की सजा बहाल कर दी। भले ही देर से सही इस केस में इंसाफ मिल गया हो लेकिन स्याह पक्ष यह भी है कि दुष्कर्म और छेड़छाड़ के मामलों में देश में सजा की दर अब भी कम है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, दुष्कर्म के मामलों में सजा की दर मात्र 27.2 फीसद है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में खामियों की वजह से ऐसा हुआ है।
आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में दुष्कर्म के 1,56,327 मामलों में मुकदमे की सुनवाई हुई। इनमें से 17,313 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और केवल 4,708 मामलों में दोषियों को सजा हुई। 11,133 मामलों में आरोपी बरी हो गए जबकि 1,472 मामलों में आरोपियों को आरोपमुक्त घोषित कर दिया गया। साल 2018 में दुष्कर्म के 1,38,642 मामले लंबित थे। गौरतलब है कि 2012 में निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म के खिलाफ कानून सख्त किए गए बावजूद इसके सजा की दर कम रही है। महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यायिक प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव करने की जरूरत है।
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