पराक्रम की न भूलने वाली गाथा: कारगिल विजय दिवस पर एकता-अखंडता को बनाए रखने की लें शपथ
कारगिल युद्ध भारतीय सेना के पराक्रम और शौर्य की ऐसी गाथा है, जो अमर और अमिट है। इसका स्मरण आवश्यक है। 21 साल पहले 26 जुलाई, 1999 को हमारे पराक्रमी सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना की धोखाधड़ी का मुंहतोड़ जवाब देकर अद्भळ्त विजय हासिल की। करीब 60 दिनों तक चले इस युद्ध में हमारे 527 जवान शहीद हुए और 1363 घायल हुए। हालांकि भारत-पाक के बीच 1947-48, 1965 और 1971 में जंग हुई, लेकिन कारगिल युद्ध कई मायनों में अलग था। पाकिस्तानी सेना आतंकियों के भेष में 16 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर आकर बैठ गई और हमारी सेना मुश्किल से सात हजार फीट की ऊंचाई पर थी। यह युद्ध इसलिए भी अलग था, क्योंकि यह पता नहीं था कि दुश्मन कितनी संख्या में है और कैसे हथियारों से लैस है। लद्दाख की भारतीय सीमा को राज्य के उत्तरी इलाके से अलग करने के उद्देश्य से की गई इस घुसपैठ ने भारतीय सेना को चौंका दिया था।
कारगिल में घुसपैठ उस समय हुई जब भारत-पाक ने लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए
यह घुसपैठ लगभग उस समय हुई जब भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही तनातनी को कम करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी, 1999 में लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को आपसी बातचीत से सुलझाने पर सहमति बनाई, लेकिन पाकिस्तान ने धोखाधड़ी का अपना स्वभाव नहीं छोड़ा और अपने सैनिकों को चोरी-छिपे नियंत्रण रेखा पार कर भारत भेजना शुरू कर दिया। इसे उसने ‘ऑपरेशन बद्र’ नाम दिया। इसके पीछे उसकी मंशा कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़कर भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था।
‘ऑपरेशन विजय’: अटल ने पाक सेना की मंशा को पहचाना और तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने घुसपैठ कर आई पाकिस्तानी सेना की मंशा को पहचाना और तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी। इसे ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया। करीब दो लाख सैनिक मोर्चे पर भेजे गए। दुर्गम परिस्थितियों में भारतीय सेना की रणनीति, सेना के सभी अंगों के समन्वय और अद्भुत साहस के परिणामस्वरूप विजय हासिल हुई। भारतीय तोपखाने ने युद्ध के दौरान करीब ढाई लाख गोले दागे यानी रोजाना लगभग 5000 गोले
पहली बार लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल हुआ
पहली बार लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल हुआ। वायुसेना को 18000 फीट पर बमबारी करने का अभ्यास नहीं था, क्योंकि सिग्नल कमजोर हो जाता था, लेकिन मिराज की उड़ानों ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए। कारगिल ने यह एक बार फिर सिद्ध किया कि हमारे जवान सीमाओं की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने में आगे रहते हैं।
लद्दाख में भारत जिस तरह चीन पर हावी हुआ वह कारगिल की ही सीख का परिणाम है
हाल में चीन और भारत के बीच हुए संघर्ष में भारत जिस तरह से चीन पर हावी हुआ वह कारगिल की ही सीख का परिणाम है। कारगिल के बाद हमने सैन्य शक्ति को हथियारों से लेकर प्रशिक्षण तक कई गुना बढ़ाया है। सुखोई, नए मिग, राफेल, अत्याधुनिक रडार सिस्टम एवं अंतरिक्ष में उपग्रहों के जाल ने परिदृश्य ही बदल दिया है। आज हम दुश्मनों की छोटी से छोटी गतिविधियों पर सीधी नजर रख रहे हैं।
आज भारत दो मोर्चों पर लड़ रहा है- कोरोना से और चीन एवं पाक की धोखेबाजी से
आज हम दो मोर्चों पर लड़ रहे हैं-कोरोना महामारी से और चीन एवं पाकिस्तान की धोखेबाजी से। पाकिस्तान-चीन तो दिखाई देने वाले शत्रु हैं, परंतु कोरोना न सिर्फ एक अदृश्य शत्रु है अपितु जानलेवा भी है। जैसे हम सभी युद्ध के समय राष्ट्र प्रेम से प्रेरित होकर एक ताकत से दुश्मन का सामना करते हैं वैसे ही कोरोना के खिलाफ भी एकजुटता दिखाने की आवश्यकता है। मुझे आज भी कारगिल के दिनों की याद ताजा है। तब लोग सड़कों पर निकल कर सैनिकों का सम्मान करते थे। तिरंगे के पीछे लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था, मानो पूरा देश युद्ध लड़ रहा हो।
कारगिल युद्ध के विजय दिवस मनाते समय एकता-अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेनी चाहिए
कारगिल युद्ध के विजय दिवस को मनाते समय हमें देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेनी चाहिए। आज के समय में परस्पर प्रेम भाव एवं सामाजिक समरसता के जिस नए युग का हम सूत्रपात करेंगे वह हमारे राष्ट्रीय जीवन मूल्यों को नई दिशा प्रदान करेगा। हमारी भारतीय परंपरा एवं संस्कृति का मूल मंत्र भी यही है।
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